'नहीं चाहिए मुसलमान पड़ोसी'
लेकिन, वहाँ पहले से रहने वालों ने विस्थापित मुस्लिम परिवारों का ये कहते हुए विरोध किया कि 'वो नहीं चाहते कि उनके पड़ोस में मुसलमान रहें.'
अब आलम ये है कि विस्थापित मुस्लिम परिवारों में कई सड़क किनारे रहने के लिए मजबूर हैं. जिन्हें छत नसीब है, उनकी स्थिति भी ख़ास अच्छी नहीं है.
कई दफ़ा तो एक ही मकान में कई परिवार रहने को मजबूर हैं. विस्थापितों को घर देने की जिम्मेदारी महानगर सेवासदन की है, लेकिन, ड्रॉ की प्रक्रिया में देरी हो रही है. कई बार जानबूझकर देरी के आरोप भी लग रहे हैं.
'हम रास्ते पर हैं'
विस्थापितों में से ही एक हैं शबाना. जिनके तीन बच्चों में से एक अपाहिज है. हालाँकि, अपाहिज बच्चे का इलाज़ कराना फिलहाल उनकी प्राथमिकता नहीं है.
शबाना कहती हैं, "इसका इलाज करवाना था, लेकिन अभी घर ही नहीं है. इसे ले कर अस्पताल जाऊंगी तो बाकी बच्चे कहां रहेंगे. हम अभी तो रास्ते पर ही सोते हैं."
कुछ ऐसा ही दर्द वहीदा का भी है. उनके दो बच्चे हैं, जिनकी पढ़ाई उनके लिए चिंता का कारण बनी हुई है.
वहीदा कहती हैं, "अस्थाई घर दिए हैं, वहां बिजली, पानी के कनेक्शन काट कर हमें परेशान किया जा रहा है, जिससे हम वहां न रहें. बच्चों का स्कूल छूट जाएगा तो क्या करेंगे. नए स्कूलों में दाखिला भी जल्दी नहीं मिलेगा."
ऑटो चलाकर परिवार पालने वाले गुलफ़ाम और सहनूर दीवान भी घर की व्यवस्था न होने से परेशान हैं.
वो कहते हैं, "अभी हमें बहुत दूर भेज दिया गया है, पुराने घर के पास धंधा सेट था, लेकिन अब बीवी बच्चों की फ़िक्र करें या काम करें, समझ में नहीं आता."
क्यों नहीं मिले घर?
विस्थापितों के पुनर्वास के लिए काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता जेएस बंदूकवाला ने बीबीसी को बताया, "जब से बस्तियों को हटाया गया तब से वहाँ रहने वाले लोगों की रोज़ी-रोटी लगभग बंद हो गई. वजह ये है कि उन्हें दिए गए मकान बस्ती के क्षेत्र से 7 से 17 किलोमीटर की दूरी पर थे."
बंदूकवाला कहते हैं, "कलाली जहां पांच सौ मकान तैयार हैं वहां इन्हें घर देने की प्रक्रिया नहीं की जा रही. वो हिन्दू इलाका है. ज़मीन के कारोबार से जुड़े लोग मानते हैं कि दलित या मुस्लिम रहने आएंगे तो उनके नए हाउसिंग प्रोजेक्ट की कीमतें गिर जाएंगी."
इसके पीछे एक राजनीतिक कारण भी बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि अगर हिंदू इलाके में मुसलमानों को घर दिए जाएंगे तो वहाँ के कार्पाेरेटर्स के वोट बंट जाएंगे.
महानगर सेवासदन की तरफ से घर देने में हो रही देरी को लेकर हमने मेयर से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो शहर में नहीं थे.
उधर, इस मुद्दे पर बंदूकवाला के धरने के बाद कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने उन्हें भी भरोसा दिया है कि मुसलमान हों या दलित, सब को छत देने की कार्यवाही जल्दी शुरू की जाएगी.
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