देश के सबसे महान प्रवासी मोहनदास करमचंद गांधी का महात्मा रूप में ‘अवतार’ को इस सप्ताह सौ साल पूरे हो रहे हैं।
उत्तराखंड के लिए यह गर्व की बात है कि बापू को यह नाम उत्तराखंड की धरती हरिद्वार में ही मिला था।
अलबत्ता यह बात जरूर अखरने की है कि गांधी जी के स्वदेश वापसी के शताब्दी वर्ष को जोर शोर से मना रही सरकारें इस ऐतिहासिक घटना को भुलाए हुए हैं।
बापू ने अपनी पुस्तक ‘सत्य के प्रयोग’ में लिखा था कि 1915 में स्वदेश वापसी के बाद दीन बंधु एंड्ज्यू की सलाह पर वो महात्मा मुंशीराम (बाद में स्वामी श्रद्धानंद) से मिलने हरिद्वार पहुंचे।
हरिद्वार में तब कुंभ मेला चल रहा था, जिसमें 17 लाख से अधिक लोगों के शामिल होने की जानकारी मिली थी।
यहां उनका ठिकाना गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय परिसर बना।
यहीं एक दिन विद्धानों की एक सभा में महात्मा मुंशीराम ने बापू को सबसे पहले महात्मा नाम दिया।
इसके बाद इसी नाम से दुनिया में वे जाने गए।
हालांकि बापू की पुस्तक में इस बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि उन्हे स्वामी श्रद्धांनद ने महात्मा संबोधन किस तिथि को दिया और बापू हरिद्वार में कब से कब तक रहे थे।
लेकिन इतिहासकार इस तिथि को अप्रैल के दूसरे सप्ताह में बताते हैं।
हरिद्वार स्थित गुरुगुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जनसंपर्क विभाग के प्रमुख डॉ. प्रदीप जोशी कहते हैं
कि गुरुकुल के दस्तावेजों के अनुसार यह तो तय है कि बापू अप्रैल 1915 में हरिद्वार आए थे। 13-14 अप्रैल में बैशाखी के मौके पर हरिद्वार में कुंभ स्नान हुआ था।
इसलिए निश्चित तौर पर यह तिथि अप्रैल के दूसरे सप्ताह की ही है। इसी यात्रा के दौरान बापू खासतौर पर लक्ष्मणझूला के पुल को देखने के लिए ऋषिकेश गए थे।
बापू और उत्तराखंड
स्वदेश वापसी के बाद बापू ने देशभर की यात्राओं के क्रम में कई बार उत्तराखंड (तब संयुक्त प्रांत) की यात्रा की।
इसमें हरिद्वार, देहरादून, मसूरी, कौसानी शामिल है। दून में बापू ने 16 अक्तूबर 1929 को तिलक रोड पर स्वामी श्रद्धानंद बाल बनीता आश्रम की नींव रखी।
जो आज बेसहारा बच्चों की सबसे बड़ी संस्था के रूप में संचातिल हो रहा है।

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