कुछ लोग अपनी बात हज़ार शब्दों में भी नहीं कह पाते. लेकिन कुछ लोग ख़ामोशी में ही सब कुछ कह जाते हैं.
शायद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की लम्बी ख़ामोशी बहुत कुछ कह रही है.
बेंगलुरु में चल रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बीच अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि आडवाणी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करेंगे या नहीं.
वहां मौजूद पत्रकारों के अनुसार शुक्रवार और शनिवार को चलने वाली इस बैठक में भाषण देने वालों की लिस्ट में आडवाणी का नाम नहीं है.
नज़रअंदाज़ किए जाने का दुख
अंग्रेज़ी अखबार 'हिन्दू' के संवाददाता जतिन गांधी कई सालों से भाजपा पर रिपोर्टिंग करते आए हैं और बेंगलुरु में भी कवरेज के लिए गए हैं.
उनके अनुसार 1980 में पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक केवल एक बार, यानी 2013 की बैठक में, आडवाणी नहीं बोले.
2013 की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी को चुनावी प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने पर आडवाणी काफी नाराज़ थे. उन्होंने इस्तीफ़ा भी दे दिया था जिसे बाद मनाए जाने पर वापस ले लिया.
इशारे ये मिल रहे हैं कि वो बेंगलुरु में खामोश रहेंगे. जतिन गांधी कहते हैं कि आडवाणी को पार्टी के हर अहम फैसलों और फ़ोरम में नज़र अंदाज़ किया गया है जिसके कारण वो एक बार फिर ख़फ़ा है.
मार्गदर्शन
दूसरी तरफ पार्टी के करता धर्ता भी चाहते हैं कि वो कुछ न कहें क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं वो पार्टी या इसके कुछ नेताओं की आलोचना न कर बैठें.
शुक्रवार को पार्टी के प्रवक्ता इस मुद्दे पर टिप्पणी देने से कतराते रहे. लेकिन आज पार्टी ने बैठक की कुछ तस्वीरें जारी की हैं जिनमें आडवाणी को वहां मौजूद दिखाया गया है. लेकिन वो अब भी इस बात का जवाब नहीं दे रहे हैं कि आडवाणी बोलेंगे या नहीं.
पत्रकार जतिन गांधी कहते हैं कि अगर आडवाणी बोले भी तो शनिवार को बोलेंगे और वो पार्टी को मार्ग दर्शन देने वाला भाषण होगा.
पिछले साल पार्टी ने एक मार्गदर्शक मंडल बनाया था जिसमें अलग थलग किए गए वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और आडवाणी शामिल किये गए थे लेकिन अब तक इसकी एक सभा भी नहीं हुई है.
ख़ामोशी टूटे या नहीं ...
आडवाणी बोलें या अपनी लम्बी ख़ामोशी बरक़रार रखें, साफ़ संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी में उनका समय अब पूरा हो चूका है. उनकी लम्बी पारी अब समाप्त होने वाली है. उनके 87 साल की उम्र को देखते हुए ये निष्कर्ष लगाना ग़लत न होगा कि दूसरी पारी खेलने का उनके पास समय कम बचा है.
लंबी उम्र के बावजूद आडवाणी स्वस्थ्य और सक्रिय हैं. उनकी राजनीतिक मृत्युलेख लिखना मूर्खता होगी.
लेकिन जिस पार्टी की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा, एक समय वो जिसके पोस्टर बॉय थे और जहां उनका शब्द आख़िरी होता था उस पार्टी में अब उनके लिए जगह नहीं है.
आडवाणी की भूमिका
नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली आज की भाजपा अपने छोटे इतिहास में आज के भारत की सब से मज़बूत पार्टी बन कर उभरी है.
सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी की वजह से वो दूसरे दलों से आगे है. और अब नौ करोड़ सदस्यों के साथ ये दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने का दावा कर रही है.
आडवाणी की ख़ामोशी टूटे या उनके शब्द गूंजे, इस बात से किसी को इंकार नहीं कि भाजपा आज कांग्रेस से आगे निकल चुकी है. भाजपा एक बड़ी पार्टी है. लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि पार्टी को इस मंज़िल तक पहुंचाने में लाल कृष्ण आडवाणी का एक बड़ा योगदान है.

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